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Wednesday 16 November 2011

"मयंक की पुस्तकों का विमोचन"

      


14 नवम्बर, 2011 को बालदिवस के अवसर परखटीमा पब्लिक स्कूल एशोसियेसन के द्वारा एक विशाल बाल मेले का आयोजन किया गया। जिसमें एशोसियेसन से जुड़े 53 विद्यालयों के छात्र-छात्राओं द्वारा रंगा-रंग कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथियों के रूप में माननीय पुष्कर सिंह धामी उपाध्यक्ष-शहरी विकास एवं अनुश्रवण परिषद, (राज्य मन्त्री, उत्तराखण्ड सरकार) और खण्ड शिक्षा अधिकारी श्री डी.एस.राजपूत पधारे।
बालदिवस के अवसर पर 20 हजार लोगों की उपस्थिति में खटीमा पब्लिक स्कूल एशोसियेसन के अध्यक्ष डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक द्वारा रचित दो पुस्तकों "हँसता गाता बचपन" (बाल कविता संग्रह) और "धरा के रंग" (कविता संग्रह) का लोकार्पण किया गया। जिसका संचालन स्थानीय हेमवतीनन्दन बहुगुणा राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. सिद्धेश्वर सिंह ने किया। इस अवसर पर माननीय पुष्कर सिंह धामी उपाध्यक्ष-शहरी विकास एवं अनुश्रवण परिषद, (राज्य मन्त्री, उत्तराखण्ड सरकार) मा. राजू भण्डारी (प्रदेश उपाध्यक्ष-भा.ज.पा) मा. रंदीप सिंह पोखरिया (प्रदेश प्रभारी-हिंदू.जा.म.), मा. महेश चन्द्र जोशी (पूर्व प्रदेश सं.मन्त्री, कांग्रेस) मा. प्रकाश तिवारी (प्रदेश अध्यक्ष-किसान कांग्रेस) श्री डी.एस.राजपूत (खण्ड शिक्षा अधिकारी), डॉ. गंगाधर राय (हिन्दी प्रवक्ता-राजकीय इंटर कालेज, खटीमा), सरस पायस के सम्पादक श्री रावेंद्रकुमार रवि, पुस्तकों की प्रकाशक श्रीमती आशा शैली, लब्धप्रतिष्ठित वरिष्ठ कवि देवदत्त प्रसूनरूमानी शायर गुरू सहाय भटनागर बदनाम, कोषाध्यक्ष-मोहन चन्द्र मुरारी तथा एशोसियेसन के समस्त पदाधिकारी उपस्थित थे।
इस अवसर पर वरिष्ठ समाज सेवी एस सी उपाध्याय डॉ. शास्त्री को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया। अपने सम्बोधन में एशोसियेसन के सचिव श्री नीरज कुमार ने कहा- "आज हमें खटीमा पब्लिक स्कूल एशोसियेसन के अध्यक्ष डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" को सम्मानित करते हुए बहुत गर्व और हर्ष का अनुभव हो रहा है।
     डॉ. गंगाधर राय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा- जनवरी 2011 में डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" की दो पुस्तकें सुख का सूरज और नन्हे सुमन प्रकाशित हुईं थी और इसके ठीक नौ माह के उपरान्त अक्टूबर, 2011 में दीपावली के पावन अवसर पर पुनः उनकी दो पुस्तकें "हँसता गाता बचपन" (बाल कविता संग्रह) और "धरा के रंग" (कविता संग्रह) प्रकाशित हुईं हैं। यह उनकी सृजन क्षमता का जीता जागता उदाहरण है।
     इस अवसर पर सरस पायस के सम्पादक श्री रावेंद्रकुमार रवि ने कहा कि मैं अक्सर मयंक जी के पास बैठता हूँ और उनकी रचनात्मक क्षमता देखकर हतप्रभ हो जाता हूँ। 62 वर्ष की आयु में भी वे बिल्कुल युवाओं की भाँति ब्लॉगिंग में संलग्न रहते हैं। उनके पास तो अभी इतना साहित्य है कि उनकी अभी एक दर्जन किताबें और प्रकाशित होने के बाद भी काफी रचनाएँ बाकी रह सकती हैं।
     खण्ड शिक्षा अधिकारी श्री डी.एस.राजपूत ने अपने सम्बोधन में कहा कि शास्त्री जी से मेरा पहली बार परिचय हुआ है और में इनकी काव्यकला का कायल हो गया हूँ। बड़े पदों पर रहने के बाद भी डॉ. मयंक में आज भी सहजता है और वे बहुत ही आत्मीयता के छोटे बड़े हर तबके के लोगों से मिलते हैं।
     डॉ. शास्त्री की पुस्तकों की प्रकाशक श्रीमती आशा शैली (आरती प्रकाशन, लालकुँआ, नैनीताल) ने अपने वक्तव्य में कहा कि डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" एक सरल, सभ्य और संस्कारवान लेखक हैं। मैं उनकी पुस्तकों को प्रकाशित करके बहुत ही गौरव का अनुभव कर रही हूँ!
     हेमवतीनन्दन बहुगुणा राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. सिद्धेश्वर सिंह ने इस अवसर पर कहा कि बालदिवस, बालमेला और बालकों के बीच में बालकविताओं की पुस्तक "हँसता गाता बचपन" और "धरा के रंग" (कविताए-संग्रह) का लोकार्पण एक सुखद संयोग है।
     मुख्यअतिथि के रूप में पधारे माननीय पुष्कर सिंह धामी उपाध्यक्ष-शहरी विकास एवं अनुश्रवण परिषद, (राज्य मन्त्री, उत्तराखण्ड सरकार) ने अपने सम्बोधन में कहा कि जनवरी में मेरे विवाह समारोह में भी डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" की दो पुस्तकों सुख का सूरज और नन्हे सुमन का विमोचन उत्तराखण्ड के तत्कालीन यशस्वी मुख्यमन्त्री मा. डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने किया था। यह मेरा सौभाग्य है कि आज मुझे
डॉ.शास्त्री की पुस्तकों "हँसता गाता बचपन" और "धरा के रंग" (कविता-संग्रह) का लोकार्पण मेरे द्वारा किया जा रहा है। मैं कामना करता हूँ कि शास्त्री जी की पुस्तकें लगातार प्रकाशित होती रहें और खटीमा का नाम विश्व में रौशन होता रहे।
     भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष मा. राजू भण्डारी ने अपने सम्बोधन में कहा कि मैं अपने गुरुवर डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री की छत्रछाया में ही पला और बड़ा हुआ हूँ। मुझे यह देख कर बहुत प्रसन्नता हो रही है कि मेरे ही गाँव अमाऊँ के निवासी और गुरुदेव शास्त्री जी की पुस्तकों का आज बलदिवस के पावन पर्व पर विमोचन किया गया है। इस अवसर पर मैं अपनी शुभकामनाएँ व्यक्त करता हूँ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने इस विमोचन समारोह में लोकार्पण की गई पुस्तकों  "हँसता गाता बचपन" और "धरा के रंग" से कुछ कविताओं का वाचन भी किया एवं इस अवसर पर पधारे सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए बालदिवस की शुभकामनाएँ दीं।

Saturday 5 November 2011

"कविता के सुख का सूरज" (डॉ. सिद्धेश्वर सिंह)

       डॉ. सिद्धेश्वर सिंह हिन्दी साहित्य और ब्लॉग की दुनिया का एक जाना-पहचाना नाम है। जब कभी विद्वता की बात चलती है तो डॉ. सिद्धेश्वर सिंह को कभी अनदेखा नहीं किया जा सकता है। कर्मनाशा ब्लॉग पर इनकी लेखनी के विविध रूपों की झलक हमको मिलती है। हिन्दी का प्रोफेसर होने के साथ-साथ इनकी अंग्रेजी पर भी समानरूप से पकड़ है। विदेशी भाषा के साहित्यकारों की रचनाओं के इन्होंने बहुत ही कुशलता से दर्जनों अनुवाद किये हैं।
       यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे इनका सानिध्य अक्सर मिलता रहता है। मेरी पुस्तक 'सुख का सूरज' की भूमिका लिखकर इन्होंने मुझे कृतार्थ किया है। जिसके लिए मैं इनका आभारी हूँ। आपके साथ मैं इस पुस्तक की भूमिका को साझा करते हुए बहुत हर्ष हो रहा है!
कविता के सुख का सूरज
शब्द कोई व्यापार नहीं है।
तलवारों की धार नहीं है।

 भूमिका

      आज, ऐसे समय में जब हमारे निकट की दुनिया में विद्यमान लगभग प्रत्येक विचार व वस्तु को उपादेयता की कसौटी पर कस कर देखे जाने का चलन आम होता जा रहा है और तात्कालिकता को एक मूल्य की तरह बरते जाने में कोई संकोच नहीं रह गया है व  कविता के लिखने-पढ़ने-सुनने-गुनने वालों के सीमित संसार में शब्द की अर्थवत्ता को लेकर बहुत गंभीरता से सोचा जाना कोई जरूरी सवाल नहीं दीखता हो वहाँ यदि कहीं  कुछ भला, सुन्दर तथा सदाशयता से पूरित अथवा उसकी ऐषणा करता हुआ-सा मिल जाता है तो इस बात पर यकीन पुख्ता होता है कि सोच एवं सृजन की सदानीरा का उद्गम जिन पहाड़ों के पार है वहाँ का हिमनद तमाम तरह की प्रतिकूलताओं के बावजूद विलोपित नहीं होगा अपितु सूरज की ऊष्मा से ऊर्जा ग्रहण कर अनंत काल तक बूँद-बूँद रिसता हुआ  स्वच्छ-जीवनदायी जल में रूपायित होता रहेगा।
आज प्रायः देखने को मिल जाता है कि हिन्दी कविता में शब्दों के करघे पर बहुत महीन कताई हो रही है। आजकल कभी-कभार तो ऐसा भी दिखाई दे जाता है कि कताई-बुनाई के अतिशय मोह में संवेदनाओं के सहज तंतु कहीं अदृश्य से हो गए हैं ऐसे में सहज ही उन कविताओं की स्मृति होने लगती है जिनके सानिध्य में हम सब का बालपन बीता है। आखिर ऐसी कौन सी बात रही है उन कविताओं में कि समय की शिल्प पर अंकित उनकी छाप अमिट है? इस प्रश्न के उत्तर में दो बातें समझ में आती हैं। पहली तो यह कि उनमें व्यक्त सहजता का सरल प्रस्तुतिकरण और दूसरी उनकी गेयता-लयात्मकता। ये दोनो चीजें कविता को एक प्रस्तुति-कला में ढाल देने के लिए सहज हैं और संप्रेषणीयता की संवाहिका भी। सुख का सूरजसंग्रह की कविताओं में निहित भाव व विचार की सहजता तथा लयात्मक संप्रेषणीयता का समन्वय इसे आज के हिन्दी कविता-संसार में अपनी-सी भाषा में कही जाने वाली अपनी-सी बात के रूप में कविता प्रेमियों को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त है।
          सुख का सूरजमें संकलित कविताओं की  विविधवर्णी छवियाँ हैं। इनमें जहाँ एक ओर वंदना-आराधना, अनुनय-विनय, राग-अनुराग, मान-मनुहार और प्रकृति-परिवेश की कोमल काया वाली कवितायें हैं वहीं दूसरी ओर कवि मयंकदेश -दुनिया में व्याप्त मोह-व्यामोह से उपजी स्वार्थपरता व शुभ, शुचि, सुंदर के प्रति तिरोहित होते मान-सम्मान से उपजी खिन्नता व आक्रोश को वाणी देते हुए एक सुन्दर तथा बेहतर दुनिया की तलाश की छटपटाहट में रत दिखाई देते हैं।

आज भी लोगों को पावस लग रही है।
चाँदनी फिर क्यों अमावस लग रही है?

          कवि मयंककी कविताओं में एक चीज जो सबसे अधिक आकर्षित करने वाली है वह है निराशा का अभाव। कविता में प्रायः ऐसा होता देखा जाता है कि प्रेम अंततः पीड़ा में परिवर्तित हो जाता है और आक्रोश नैराश्य की शरण में पलायन कर अपना एक ऐसा संसार रच लेता है जो इसी दुनिया में होता हुआ भी इसी दुनिया से दूरी बनाने को अपना ध्येय मान लेता है लेकिन सुख का सूरजकी कविताओं में पीड़ा में ही प्रियतम की तलाश का आभास नहीं है अपितु इन कविताओं में इसी दुनिया में निवास करने वाले मनुष्य देहधरी दो प्राणियों के अंतस में अवस्थित अनुराग को स्वर देने की सहजता है और प्रतिकूलताओं-प्रपंचों की निन्दा-आलोचना से आगे बढ़कर एक नये सुखमय,  सौहार्द्रपूर्ण संसार की रचना के प्रति विश्वास व क्रियाशीलता का स्पष्ट आग्रह दिखाई देता है।

लक्ष्य है मुश्किल बहुत ही दूर है।
साधना मुझको निशाना आ गया है।

हाथ लेकर हाथ में जब चल पड़े ,
साथ उनको भी निभाना आ गया है।

          डॉ.. रूपचंद्र शास्त्री मयंक  एक सहज, सरल, सहृदय व्यक्ति हैं। उनके पास राजनीतिक-सामाजिक जीवन का सुदीर्घ अनुभव है। जीवन व जगत वैविध्यता को उन्होंने खूब देखा-परखा है।  एक साहित्यकार और ब्लॉगर के रूप में भी वे सबके सुपरिचित हैं। यह उनकी उदारता व स्नेह ही है कि मुझे इस संग्रह की पांडुलिपि को पढ़ने का सुख  मिला है तथा  दो शब्दलिखने का सौभाग्य। सुख का सूरज उनकी चुनिंदा कविताओं का ऐसा संग्रह है जो द्रुत गति से भाग रहे कुहरीले दिवस के क्षितिज पर सूरज की तरह उदित होकर साहित्य प्रेमियों को सुख देगा और रचना की रात्रि के पटल पर उनके उपनाम मयंक की सार्थकता को सिद्ध करेगा और अंत में स्वयं कवि के ही शब्दों में बस यही कहना है- 

पथ आलोकित है, आगे को बढ़ते जाओ।
उत्कर्षों के उच्च शिखर पर चढ़ते  जाओ।

-         सिद्धेश्वर सिंह
21नवंबर, 2010
(डॉ. सिद्धेश्वर सिंह)
           हिन्दी विभागाध्यक्ष:राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय
खटीमा, जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड)