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Tuesday 23 February 2010

“गुरूद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

“संक्षिप्त इतिहास”

“गुरूद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब” का “संक्षिप्त इतिहास”
Gurudwara Sri Nanak Matta Sahib Ji
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गुरुद्वारा के साथ पवित्र सरोवर
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सरोवर में मछलियाँ
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गुरूद्वारा परिसर में दो वर्ष पूर्व मिला कुआँ
प्रतिदिन चलने वाला लंगर
गुरूद्वारा 6वीं पातशाही
Gurudwara Six Patshahi in Tapera
आज जिस पवित्र स्थान का मैं वर्णन कर रहा हूँ, पहले यह स्थान “सिद्धमत्ता” के नाम स जाना जाता था।
यह वह स्थान है जहाँ सिक्खों के प्रथम गुरू नानकदेव जी और छठे गुरू हरगोविन्द साहिब के चरण पड़े।
तीसरी उदासी के समय गुरू नानकदेव जी रीठा साहिब से चलकर सन् 1508 के लगभग भाई मरदाना जी के साथ यहाँ पहुँचे। उस समय यहाँ गुरू गोरक्षनाथ के शिष्यों का निवास हुआ करता था। नैनीताल और पीलीभीत के इन भयानक जंगलों में  योगियों ने भारी गढ़ स्थापित किया हुआ था जिसका नाम गोरखमत्ता हुआ करता था।
यहाँ एक पीपल का सूखा वृक्ष था। इसके नीचे गुरू नानक देव जी ने अपना आसन जमा लिया। कहा जाता है कि गुरू जी के पवित्र चरण पड़ते ही यह पीपल का वृक्ष हरा-भरा हो गया।
रात के समय योगियों ने अपनी योग शक्ति के द्वारा आंधी और बरसात शुरू कर दी और पीपल के वृक्ष हवा में ऊपर को उड़ने लगा।
यह देकर गुरू नानकदेव जी ने इस पपल के वृक्ष पर अपना पंजा लगा दिया जिसके कारण वृक्ष यहीं पर रुक गया। आज भी इस वृक्ष की जड़ें जमीन से 15 फीट ऊपर देखी जा सकती हैं।
इसे आज लोग पंजा साहिब के नाम से जानते हैं।
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गुरूनानक जी के यहाँ से चले जाने के उपरान्त कालान्तर में इस पीपल के पेड़ में आग लगा दी और इस पीपल के पेड़ को अपने कब्जे में लेने का प्रयास किया। उस समय बाबा अलमस्त जी यहाँ के सेवादार थे। उन्हें भी सिद्धों ने मार-पीटकर भगा दिया।
बाबा अलमस्त साहिब
Gurudwara Baba Al Mast Sahib Ji Who Called the Six Sikh Guru Har Gobind Sahib Ji to resote the Nanak Matta as a Sikh Shrine
सिक्खों के छठे गुरू हरगोविन्द साहिब को जब इस घटना की जानकारी मिली तो वे यहाँ पधारे और केसर के छींटे मार कर इस पीपल के वृक्ष को पुनः हरा-भरा कर दिया।
आज भी इस पीपल के हरेक पत्ते पर केशर के पीले निशान पाये जाते हैं।
आगे का विवरण आप चित्रों के द्वारा देखिए-
ऐतिहासिक धूना साहिब
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ऐतिहासिक भौंरा साहिब
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गुरूद्वारा भण्डारा साहिब
Gurudwara Bhandara Sahib ji
इतिहास कहता है कि सिद्ध योगियों के द्वारा गुरूनानकदेव जी से 36 प्रकार के व्यञ्नों को खाने की माँग की गई। उस समय गुरू जी एक वट-वृक्ष के नीचे बैठ थे।
गुरू जी ने मरदाना से कहा कि भाई इन सिद्धों को भोजन कराओ। जरा इस वट-वृक्ष पर चढ़कर इसे हिला तो दो।
मरदाना ने जसे ही पेड़ हिलाया तो उस पर से 36 प्रकार के व्यञ्नों की बारिश हुई।
गुरूद्वारा दूधवाला कुआँ
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नानक प्रकाश में लिखा है- 
“मम तूंबा पै सौ भर दीजे,
अब ही तूरण बिलम न कीजै।
श्री नानक तब लै निज हाथा,
भरियो कूप ते दूधहि साथा।”
भाई वीर सिंह जी कहते हैं कि गुरूजी ने कुएँ में से पानी का तूम्बा भर दिया जो सभी ने पिया। मगर यह पानी नही दूध था।
आज भी यह कुआँ मौजूद है और इसके जल में से आज भी कच्चे दूध की महक आती है।
फाउड़ी गंगा
Bowli Sahib, Maradana The pupil of Sri Guru Nanak Dev Ji dragged the River to this place by a simple stick in hand
भौंरा साहब में बैठाया हुआ बच्चा जब मर गया तो सिद्धों ने गुरू जी से उसे जीवित करने की प्रार्थना की तो गुरू जी ने कृपा करके उसे जीवित कर दिया। इससे सिद्ध बहुत प्रसन्न हो गये और गंगा को यहाँ लाने की प्रार्थना करने लगे।
गुरू जी ने मरदाना को एक फाउड़ी देकर कहा कि तुम इस फाउड़ी से जमीन पर निशान बनाकर  सीधे यहाँ चले आना और पीछे मुड़कर मत देखना। गंगा तुम्हारे पीछे-पीछे आ जायेगी।
मरदाना ने ऐसा ही किया लेकिन क्छ दूर आकर पीछे मुड़कर देख लिया कि गंगा मेरे पीछे आ भी रही है या नही।
इससे गंगा वहीं रुक गई।
nanak_sagar_dam5.jpg image by sck4784
तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने यहाँ नानक सागर डाम का निर्माण कराया तो यह स्थान उसमें आ गया आज भी यह स्थान कुछ इस प्रकार सुरक्षित है। 
नानक सागर के किनारे बना पार्क

Friday 19 February 2010

“दो सौ रुपये दीजिए! सम्मान लीजिए!!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

“तस्कर साहित्यकार”


कुछ दिन पूर्व मेरे पास एक जुगाड़ू कवि आये।
बोले- “मान्यवर! अपना एक फोटो दे दीजिए!”
मैंने पूछा- “क्या करोगे?”
कहने लगे- “आपको बाल साहित्य के पुरस्कार से सम्मानित करना है! मैं एक कार्यक्रम करा रहा हूँ। उसमें केवल उन्हीं को सम्मानित किया जायेगा जो दो सौ रुपये की रसीद कटावायेंगे।”
मैंने कहा- “कार्यक्रम की रूपरेखा बताइए!”
उन्होंने बताना शुरू किया-“7-8 महीने पूर्व धनानन्द प्रकाश की पत्नी की डैथ हुई थी, वो उनकी स्मृति में पुरस्कारों का व्यय वहन कर रहे हैं। एक उद्योगपति ने खाने-रहने और वेन्यू की व्यवस्था कर दी है!  इसके अलावा जनरल चन्दा-उगाही भी करेंगे। ”
मैंने कहा- “मित्रवर! दान के नाम पर तो हजार-पाँच सौ रुपये दे सकता हूँ। लेकिन पुरस्कार खरीदने के लिए दो सौ रुपये मेरे पास नही हैं।”
अच्छा एक बात बताइए- “पुरस्कार और रहने खाने की व्यवस्था तो मुफ्त में हो रही है तो दान-चन्दा और पुरस्कार के एवज में 200 रुपये क्यों माँग रहे हो?”
अब वो बुरा सा मुँह बना कर बोले- “अरे यार! क्या मैं किसी के बाप का नौकर हूँ? आखिर मुझे भी तो पारिश्रमिक चाहिए!”
जानना चाहते हो इन साहित्यकारों को क्या कहते हैं?
इनके लिए तो एक ही नाम है-

“तस्कर साहित्यकार!”

Friday 12 February 2010

“महर्षि दयानन्द सरस्वती को शत्-शत् नमन!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

आज स्वामी दयानन्द बोधरात्रि है!
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शिवरात्रि को ही बालक मूलशंकर को बोध हुआ था!
परम शैव भक्त कर्षन जी तिवारी के घर टंकारा गुजरात में
बालक मूल शंकर का जन्म हुआ था!
शिव भक्त होने के कारण इस बालक ने भी शिवरात्रि का व्रत रखा था!
रात्रि में शिव मन्दिर में बालक मूलशंकर आखों पर पानी के छींटे डाल-डाल कर जगता रहा कि आज सच्चे शिव के साक्षात् दर्शन हो जायेंगे!
आधी रात के पश्चात जब सब भक्त जन सो रहे थे तो कुछ चूहे शिव की पिण्डी पर चढ़कर प्रसाद खाने लगे और वहीं पर विष्टा भी करने लगे!
यह देखकर मूलशंकर को बोध हुआ! उन्होंने कहा कि सच्चा शिव तो कोई और ही है!
यह शिव जब अपनी रक्षा भी नही कर सकता तो जग का कल्याण कैसे करेगा?
यह कह कर उन्होंने व्रत तोड़ दिया और सच्चे शिव की खोज में निकल पड़े!
हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने कुरीतियों का खण्डन किया और सत्य सनातन वैदिक धर्म का प्रचार किया!
वेदों का महाभाष्य किया तथा दुनिया को सत्य धर्म का मार्ग बताया!
महर्षि दयानन्द सरस्वती को शत्-शत् नमन!

Monday 8 February 2010

“समीर लाल का स्वर सुन लिया!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

“लाइव-संस्मरण”

“…… ….. की आवाज पतली है?”

दिनांकः 07-02-2010
समयः 9-47 PM
अचानक मेरा चैट बॉक्स खुला-

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Udan: शास्त्री जी प्रणाम


कैसे हैं.


मुझे: नमस्कार जी!


मैं ठीक हूँ आप कैसे हैं?


Udan: बस, आपका शुभाशीष है


आपके माईक है क्या? एक टेस्टिंग करना था.


मुझे: भारत कब आ रहे हैं?


Udan: जी, इस बरस में आना तो पक्का है.


अभी माह नहीं तय हो पाया है


९:४९ PM


मुझे: जी है लगा लिया है!


Udan: अच्छा


यह वार्तालाप हुआ लिखकर!

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अब माइक लगा कर साक्षात् रूप से बातें शुरू हो गयीं


कनाडा के समीर लाल जी (उड़नतश्तरी) से-


मैंने समीर लाल जी से कहा-


“पंकज मिश्र जी ने पोस्ट लिखी थी कि


आपकी आवाज वहुत पतली है।”


समीर जी ने कहा-


“क्या आपको ऐसा लगता है?”


मैंने कहा-


“समीर जी मुझे तो आपकी आवाज पतली


कहीं से भी नही लगी है!


मगर आपका स्वर मधुर अवश्य है।”


समीर लाल जी ने कहा-


“शास्त्री जी! आपको मैंने डिस्टर्ब तो नही किया!


आदरणीया भाभी जी को मेरा प्रणाम कहें!”


मैंने कहा-


“अरे समीर भ्राता जी!


हमारे खटीमा में एक दान सिंह रावत जी हैं,


उनको उत्तर प्रदेश सरकार ने भी राज्य-मन्त्री बनाया था।


अब वे उत्तराखण्ड में भी सहकारी बैंकों के भी चेयरमैन है।


उनकी शक्ल और आवाज आपसे हूबहू मिलती है।”


समीर जी ने कहा-


“शास्त्री जी! आपके यहाँ आऊँगा तो मैं उनसे भी मिलना चाहूँगा।”


इसके बाद मैंने उनको सुप्रभात कहा


और


उन्होंने मुझे शुभरात्रि कहा!

Thursday 4 February 2010

"माँ तुम्हारी आरती में ही मेरा संसार है” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

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आपका माँ! दास पर उपकार है उपकार है।
आपके आशीष ही, मेरे लिए उपहार है।।

आपके बल से कलम-स्याही, सभी की बोलती,
कण्ठ में हो आप तो, रसना सुधा सा घोलती,
गीत-छऩ्दों में समाया, आपका आधार है।
आपके आशीष ही, मेरे लिए उपहार है।।

हो रहा सारा जगत्, रौशन तुम्हारे ज्ञान से,
छेड़ दो वीणा मधुर, जग मस्त हो सुर-तान से,
माँ तुम्हारी आरती में ही, मेरा संसार है।
आपके आशीष ही, मेरे लिए उपहार है।।

Monday 1 February 2010

कृपा करो बिजली महारानी! (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक)

ल अपराह्न 3 बजे से हमारे शहर की बत्ती गुल है!

आशा है कि आज दोपहर के पश्चात 
कुछ वैकल्पिक व्यवस्था हो पायेगी!

तभी आप लोगों से सम्पर्क होगा!

यह सूचना पोस्ट लैपटॉप से बमुश्किल लगा पाया हूँ।

अब बिना बिजली के यह भी मजबूरी प्रकट कर रहा है।